सपनों के शहर में तेरे साथ चल रहा मैं,
मन में एक खौफ, कहीं खो न जाऊं मैं।
तू मेरा साथी, मेरा सहारा, मेरा सपना,
फिर क्यों मन में ये खौफ, ये डर का साया?
सपनों की राह में कांटे भी हैं, फूल भी,
तेरी यादों के पहरे में, हर बंधन लगती सूत सी।
पर डर है ये, कि तेरे बिना मैं अकेला हो जाऊं,
सपनों के इस संग्राम में खो ही ना जाऊं।
सपने पूरे करने की चाहत है,
पर तेरे बिना ये जीत अधूरी सी लगेगी।
तेरे बिना सफलता का कोई औचित्य नहीं,
तेरे बिना हर खुशी बेमानी सी लगेगी।
कभी लगता है, सपने छोड़े दें,
बस वही जम जाऊं जहां तेरा साथ रहें,
पर फिर मन कहता है, सपने भी पूरे करने हैं,
ये मुकाम का ना पाना तेरी यादों की बदनामी है।
अरे ये दिल क्यों इतना उलझा हुआ है,
एक ओर सपने, दूसरी ओर तू।
कैसे ढूंढूं उस रास्ते को,
जहां सपने भी पूरे हों, और तू भी मेरे साथ हो।
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